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Showing posts from May 18, 2025

आदर्श शहर की परिकल्पना;झारखंड राज्य का परिदृश्य और विकास का रास्ता

         भारत देश का इतिहास जितना पुराना रहा है, वैसा ही प्राचीन यहाँ के शहरों कस्बों का इतिहास है. पाटलिपुत्र,ताम्रलिप्ति,वैशाली,कन्नौज,उज्जैन,हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ,तक्षशिला,भद्रक,द्वारकापूरी,दक्षिण भारत में तंज़ौर,मदुरै,महाबलीपुरम,रामेश्वरम,कोच्चि प्रसिद्ध एवम् पुरातन नगरीय बसावट के केंद्र रहे हैं,जिनकी समृद्धि की धमक आज भी है. श्रावस्ती,नालंदा,काशी,मथुरा,अयोध्या,अहमदाबाद,देवगिरि,राजगीर,पुरी,भड़ौच,कांचीपुरम,विक्रमशिला,हम्पी आदि भी देश के प्राचीनतम शहरों में से हैं. बल्कि हमारे देश में प्राचीनतम सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के जो अवशेष भग्नावशेष विभिन्न उत्खनन में प्राप्त हैं, उसका स्वरूप शहरी बसावट का ही है.योजनाबद्ध तरीके से बसे मोहन जोदड़ो,हड़प्पा,सुरकोतड़ा,राखीगढ़ी के शहर और तत्कालीन पोर्ट सिटी के रूप में बसा लोथल.इन बसावटों में सड़कें और गलियाँ लंबाई चौड़ाई में हैं,सड़कों के किनारे प्रकाश व्यवस्था के स्तम्भनुमा स्ट्रक्चर,दुमंजिला तक बने मकान जिनमें शौचालय की व्यवस्था भी विद्यमान है, कम्युनिटी बाजार और अनाज भंडारण के स्थल,पर्याप्त ओपन स्पेस और ...

आदिवासी विकास;परिकल्पना,वास्तविकता और झारखंड राज्य के विकास की राह

  आदिवासी अपने क्षेत्रों के प्राचीनतम निवासी हैं. अफ्रीका के जुलू और मसाई,यूरोप के जिप्सियों,अमेरिका के चिरोकी और अपाचे इंडियन्स,ऑस्ट्रेलिया में ऐबोरिजिन्स, न्यूजीलैंड के माओरी.अपने ही देश में उत्तरांचल के लेपचा,भूटिया; नार्थ ईस्ट में मिज़ो,नागा,गारो,खासी,मध्य भारत में संथाल,ऊरांव,मुंडा,गोंड,भील,दक्षिण भारत में टोड,बडागा एवं वेद्दा तथा अंडमान के जरावा एवं सेंटलनीज़. हमारे झारखंड में संताल परगना के राजमहल की पहाड़ियों से लेकर पलामू गुमला के पठारी भूखंडों तक;कोडरमा हजारीबाग के मैदानी भूभाग से लेकर सिंहभूम के गुंझान जंगलों तक विभिन्न आदिवासी समुदायों का वास ऐसे मिलेगा जैसे प्रकृति ने विशेष रूप से इन्हें इन जगहों में स्वयं बसाया हो.झारखंड प्रदेश प्राकृतिक बनावट में पठार,पहाड़ियों से भरा है.भौगोलिक रूप में प्रमाणित है कि यह भूखंड दुनिया के प्राचीनतम् भूखण्डों में से है.वास्तव में यह क्षेत्र आदिवासियों की ही वास भूमि रही है.आदिवासियों की जितनी प्रजातियों यहाँ वास करती है,उतनी विभिन्नता विश्व के किसी और क्षेत्र में कहीं और नहीं दिखाई देती.हम आदिवासी यहाँ के इंडिजेनस लोग हैं. पहाड़िया,संता...

रहस्य रोमांच के उस्ताद,इब्ने सफ़ी बी ए,अगला भाग

कुछ नया पढ़ने की मेरी हमेशा अभिरूचि रही. पिता चूँकि अधिवक्ता थे,इस कारण हमारे घर का एक कमरा क्लाइंट से मिलने का था और वह क़ानून की मोटी मोटी जिल्दों से भरा हुआ था.वहाँ इसके अतिरिक्त जर्नल्स,सामयिक राजनीति पर लिखी किताबें,शरतचंद्र,मुंशी प्रेमचन्द्र,जयशंकर प्रसाद की कहानियों और निराला,दिनकर,बच्चन की कविताओं के संग्रह के साथ इब्ने सफ़ी के उपन्यासों सहित ढेरों हिंदी अंग्रेजी लेखकों के जासूसी उपन्यास थे.छोटी ही उम्र में किसी समय इन किताबों को उलट कर देखा,फिर पढ़ना आरम्भ किया तो शुरुआत से ही एक्शन,रहस्य,और सहज़ हास्य प्रसंगों से भरे इब्ने सफ़ी के उपन्यासों ने दीवाना बना दिया.उनके सहज़ साहित्यिक प्रभाव को बाद में समझ पाया.बूढ़े बुजुर्गों से सुना था कि बहुत लोगों ने स्व०देवकीनन्दन खत्री के ऐयारी पर चंद्रकान्ता,भूतनाथ और अन्य तिलस्मी कहानियों के लेखन को पढ़ने के लिए हिंदी सीखी.यही प्रभाव इब्ने सफी का पढ़ने के प्रति एक जेनरेशन की रुचि जगाये रखने में रहा.दुर्भाग्यवश आज के जेनरेशन के पास ऐसा अवसर और मौका नहीं है,वह सोशल मीडिया,आत्मतुष्टि और अपनी पीठ थपथपाने की प्रवृति से ग्रस्त होता दिखता है और पु...

रहस्य रोमांच के उस्ताद इब्ने सफ़ी बी ए

साहित्य लेखन की एक विधा जासूसी कहानियों और उपन्यासों का लेखन भी रहा है.ज़ासूसी उपन्यास लेखन को कई बार पलायन का साहित्य कह कर नकार दिया जाता है,सच्चाई से दूर माना जाता है,लेकिन आम आदमी के बीच जासूसी उपन्यासों की हमेशा लोकप्रियता बनी रही है.आम जीवन में भी सामान्यतःआखिर अपराध का पर्दाफाश होता है,अपराधी पकड़े ही जाते हैं,अन्यथा एक मानवीय कमजोरी फ़ीतना यानि अपराध भी रही है और अपराधी पकडे़ न जाते तो दुनिया में फ़ितनों की बाढ़ रहती.आम आदमी हमेशा असत्य और जुल्म के विरूद्ध सच और न्याय के जीत की कामना करता है और ऐसे लेखन की ओर हमेशा से आकर्षित होता रहा है. विदेशों में जासूसी उपन्यासों की रचना उपन्यास लेखन की मुख्य विधा का ही हिस्सा माना जाता है.एडगर एलन पो,आर्थर कॉनन डॉयल,अगाथा क्रिस्टी,रेमण्ड चांडलर,जेम्स हेडली चेज़ और आज के इयान रानकिन,ली चाइल्ड और जो नेस्बो स्तरीय लोकप्रिय जासूसी एवं अपराध कथाओं की रचना करते रहे हैं.साहित्य में सबसे ज़्यादा बेस्टसेलर इसी विधा से आते रहे हैं.हिंदी उर्दू में एक जासूसी लेखक रहे हैं,स्वर्गीय इब्ने सफी,जो तत्कालीन भारत के इलाहाबाद में जन्मे और वहीं से ज़ासूसी लेखन...

आदिवासी विकास;परिकल्पना,वास्तविकता और झारखंड राज्य के विकास की राह

आदिवासी अपने क्षेत्रों के प्राचीनतम निवासी हैं. अफ्रीका के जुलू और मसाई,यूरोप के जिप्सियों,अमेरिका के चिरोकी और अपाचे इंडियन्स,ऑस्ट्रेलिया में ऐबोरिजिन्स, न्यूजीलैंड के माओरी.अपने ही देश में उत्तरांचल के लेपचा,भूटिया; नार्थ ईस्ट में मिज़ो,नागा,गारो,खासी,मध्य भारत में संथाल,गोंड,भील,दक्षिण भारत में टोड,बडागा एवं वेद्दा तथा अंडमान के जरावा एवं सेंटलनीज़. हमारे झारखंड में संताल परगना के राजमहल की पहाड़ियों से लेकर पलामू गुमला के पठारी भूखंडों तक;कोडरमा हजारीबाग के मैदानी भूभाग से लेकर सिंहभूम के गुंझान जंगलों तक विभिन्न आदिवासी समुदायों का वास ऐसे मिलेगा जैसे प्रकृति ने विशेष रूप से इन्हें इन जगहों में स्वयं बसाया हो.झारखंड प्रदेश प्राकृतिक बनावट में पठार,पहाड़ियों से भरा है.भौगोलिक रूप में प्रमाणित है कि यह भूखंड दुनिया के प्राचीनतम् भूखण्डों में से है.वास्तव में यह क्षेत्र आदिवासियों की ही वास भूमि रही है.आदिवासियों की जितनी प्रजातियों यहाँ वास करती है,उतनी विभिन्नता विश्व के किसी और क्षेत्र में कहीं और नहीं दिखाई देती. पहाड़िया,संताल,उरांव,मुंडा,हो,खरवार,बिरजिया, कोरवा,असुर,बिरहोर,खड़ि...