

साहित्य लेखन की एक विधा जासूसी कहानियों और उपन्यासों का लेखन भी रहा है.ज़ासूसी उपन्यास लेखन को कई बार पलायन का साहित्य कह कर नकार दिया जाता है,सच्चाई से दूर माना जाता है,लेकिन आम आदमी के बीच जासूसी उपन्यासों की हमेशा लोकप्रियता बनी रही है.आम जीवन में भी सामान्यतःआखिर अपराध का पर्दाफाश होता है,अपराधी पकड़े ही जाते हैं,अन्यथा एक मानवीय कमजोरी फ़ीतना यानि अपराध भी रही है और अपराधी पकडे़ न जाते तो दुनिया में फ़ितनों की बाढ़ रहती.आम आदमी हमेशा असत्य और जुल्म के विरूद्ध सच और न्याय के जीत की कामना करता है और ऐसे लेखन की ओर हमेशा से आकर्षित होता रहा है.
विदेशों में जासूसी उपन्यासों की रचना उपन्यास लेखन की मुख्य विधा का ही हिस्सा माना जाता है.एडगर एलन पो,आर्थर कॉनन डॉयल,अगाथा क्रिस्टी,रेमण्ड चांडलर,जेम्स हेडली चेज़ और आज के इयान रानकिन,ली चाइल्ड और जो नेस्बो स्तरीय लोकप्रिय जासूसी एवं अपराध कथाओं की रचना करते रहे हैं.साहित्य में सबसे ज़्यादा बेस्टसेलर इसी विधा से आते रहे हैं.हिंदी उर्दू में एक जासूसी लेखक रहे हैं,स्वर्गीय इब्ने सफी,जो तत्कालीन भारत के इलाहाबाद में जन्मे और वहीं से ज़ासूसी लेखन शुरू किया.उनके उपन्यास इलाहाबाद से छपने वाली मासिक पत्रिका जासूसी दुनिया में प्रति माह प्रकाशित होते थे.आज़ादी के कुछ वर्षों के बाद वे पाकिस्तान चले गए और वहाँ उनकी लेखनी न केवल चालू रही,बल्कि उनके उपन्यास पाकिस्तान के साथ भारत में भी छपते रहे और उन्होंने दोनों देशों में असीम लोकप्रियता पायी.अपने समय में उनके उपन्यास हॉट केक की तरह बिके,हर नॉवेल बेस्टसेलर था.उन्होंने 1952 से अपने मृत्यु के वर्ष 1980 तक,बीच के तीन वर्ष 1960-63 तक जब वह सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थे,को छोड़ लगातार लिखा.उनके जासूसी दुनिया और इमरान सीरिज़ के लगभग 245 नॉवेल प्रकाशित हुए.

इब्ने सफी साहेब की लेखनी में जो रवानी थी,जो फ़्लो था,उसे इलाहाबाद से प्रकाशित हिन्दी में अनुवादित जासूसी दुनिया के उपन्यासों में बनाया रखा गया,हालांकि अनुवाद उच्च स्तरीय तो नहीं ही था.उर्दू में उनकी भाषा शैली बेमिसाल थी.उपन्यासों का नयापन भी वह कारण रहा कि उनकी पॉपुलरिटी और बिकने का रिकार्ड रहा.कुछ वर्ष पहले हार्पर कॉलिन्स से इनके कुछ नॉवेल्स आये,उच्च स्तरीय अनुवाद होने के बावज़ूद सफ़ी साहेब की लेखनी के रवानी को बनाये नहीं रख पाया.सही मार्केटिंग स्ट्रैटेजी का अभाव भी रहा कि हार्पर से प्रकाशित नॉवेल्स उस तरह बिक नहीं पाये,और अगले नॉवल्स के पब्लिकेशन का इरादा तर्क कर दिया गया.दूसरी बात इलाहाबाद के प्रकाशक द्वारा बड़ी होशियारी से इनके उपन्यासों के कुछ पात्रों के नाम बदले गए,गंगा जमनी तहज़ीब को आधार बनाते हुए मुख्य नायक फ़रीदी और इमरान का नाम बदलकर क्रमश: विनोद और राज़ेश कर दिया,जिसे देश के उत्तर भारतीय बहुसंख्यक पाठकों ने हाथों हाथ अपनाया.वर्तमान विभेद के माहौल में इब्ने सफ़ी साहब को आसानी से पाकिस्तानी लेखक मान लिया जाता है,जबकि पूर्ववर्ती माहौल ने उन्हें अपना ही एक लेखक नावेलनिगार तक़सीम किया हुआ था.
इब्ने सफ़ी के उपन्यासों की खूबी उनके उपन्यासों में प्लॉट की तेज रफ्तारी और घटनाओं का अनोखा जुड़ाव का रहना था,पाठक अगला पृष्ठ उलटने के लिए मजबूर हो जाता था.उनकी कहानियों में हिंदुस्तानी मिट्टी की ख़ुशबू थी,शैली पूर्णतः देशज़ थी.उसमे आज के जासूसी लेखकों की तरह बेमतलब के प्रसंग नहीं रहते थे;न ही सेक्स और बेमतलब हिंसा की चाशनी की जरूरत पड़ी,इस कारण वे सभी तबके के लोगों की पसंद बने रहे।वह अपने नॉवल्स के माध्यम से तत्कालीन तीसरी दुनिया के आवाज थे,इसलिये आम अवाम के बीच मक़बूल थे.वह अपने समय इतने लोकप्रिय थे कि 1963 में बीमारी से उबरने के बाद उनके छपे नॉवेल डेढ़ मतवाले का विमोचन तत्कालीन गृहमंत्री जो बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने,स्व० लाल बहादुर शास्त्री द्वारा किया गया और यह नावेल इतना बिका कि एक सप्ताह में आउट ऑफ़ प्रिंट हो गया,नया एडिशन छापना पड़ा .क्या अदीब,क्या मजदूर,यहाँ तक गृहणियाँ भी अपने गृह कार्य से फारिग होकर उनके उपन्यासों को पढ़ते थीं.आज तक हिंदी उर्दू में उनके बराबर का लोकप्रिय जासूसी उपन्यासकार नहीं हुआ.क्रमश:
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