
कुछ नया पढ़ने की मेरी हमेशा अभिरूचि रही. पिता चूँकि अधिवक्ता थे,इस कारण हमारे घर का एक कमरा क्लाइंट से मिलने का था और वह क़ानून की मोटी मोटी जिल्दों से भरा हुआ था.वहाँ इसके अतिरिक्त जर्नल्स,सामयिक राजनीति पर लिखी किताबें,शरतचंद्र,मुंशी प्रेमचन्द्र,जयशंकर प्रसाद की कहानियों और निराला,दिनकर,बच्चन की कविताओं के संग्रह के साथ इब्ने सफ़ी के उपन्यासों सहित ढेरों हिंदी अंग्रेजी लेखकों के जासूसी उपन्यास थे.छोटी ही उम्र में किसी समय इन किताबों को उलट कर देखा,फिर पढ़ना आरम्भ किया तो शुरुआत से ही एक्शन,रहस्य,और सहज़ हास्य प्रसंगों से भरे इब्ने सफ़ी के उपन्यासों ने दीवाना बना दिया.उनके सहज़ साहित्यिक प्रभाव को बाद में समझ पाया.बूढ़े बुजुर्गों से सुना था कि बहुत लोगों ने स्व०देवकीनन्दन खत्री के ऐयारी पर चंद्रकान्ता,भूतनाथ और अन्य तिलस्मी कहानियों के लेखन को पढ़ने के लिए हिंदी सीखी.यही प्रभाव इब्ने सफी का पढ़ने के प्रति एक जेनरेशन की रुचि जगाये रखने में रहा.दुर्भाग्यवश आज के जेनरेशन के पास ऐसा अवसर और मौका नहीं है,वह सोशल मीडिया,आत्मतुष्टि और अपनी पीठ थपथपाने की प्रवृति से ग्रस्त होता दिखता है और पुस्तकों से ज़्यादा रुचि टीवी सोशल मीडिया ने ले ली है,लेकिन एक जमाना इब्ने सफ़ी जैसे लोकप्रिय साहित्य के लेखकों जा भी रहा.
इब्ने सफ़ी ने अपने उपन्यासों में अपराध और संबद्ध मनोविज्ञान के हर पहलू को छुआ. विदेशी और अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र,सम्पत्ति पर अधिकार के लिए आपराधिक जुगाड़ों,कालाबाज़ारी,ब्लैकमेलिंग,मिलावटी और नशीले वस्तुओं का अवैध व्यवसाय,सेक्स रैकेट,ठगी और ठगी की प्रथा,सत्ताधीशों नौकरशाहों के आपराधिक सनक ,बैंक रॉबरी,समाज में व्याप्त अंधविश्वास,कुरीतियों और उनकी आड़ में हो रहे शोषण आदि सब पर लिखा.उनका मानना था कि राष्ट्रों के अपराध को बड़ी आसानी से कूटनीति कह दिया जाता है,जबकि व्यक्ति के वही कार्य अपराध की व्याख्या पाता है,अतैव अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रों का खुलासा करने के अलावा अपराधी प्रवृत्ति उजागर करने सुधारने पर उनका जोर रहता था.इनका कहना था कि अपने लेखन से अगर मैं देश में व्याप्त और बढ़ते अपराध की प्रवृत्ति के विरुद्ध लोगों विशेषकर नवजवानों को जागरूक कर सकूँ तो यह समाज के प्रति मेरा दायित्व निर्वहन और व्यक्तिगत योगदान होगा.
राष्ट्रों और समाजों में आम तौर पर जिसकी लाठी,उसकी भैंस,और बड़ी मछली छोटी को खा जाती है,सर्वमान्य अवधारणाएँ हैं,जिस आधार पर आम जन शोषण और हिंसा के शिकार होते रहते हैं.सदियों से यह अन्याय चलता रहा है.आम तौर पर जासूसी उपन्यासों में जासूस इन षड्यंत्रों का पर्दाफाश कर समाज एवं राष्ट्र को राहत दिलाते दिखते हैं,इस कारणवश इस तरह के नॉवेल्स की विधा हर देश के साहित्य की लोकप्रिय विधा है.इब्ने सफ़ी के जासूस पात्र भी हमेशा इस अन्याय और ग़ैर बराबरी के विरुद्ध संघर्षशील रहते हैं और मज़लूम के पक्ष में खड़े रहते हैं.इस तरह के नॉवेलिस्ट कई बार रोमांच के नाम पर अंधविश्वास परोसते हैं,लेकिन इब्ने सफ़ी इस मामले में अन्य उपन्यासकारों से भिन्न हैं,उनके उपन्यासों में अंधविश्वास,भूतप्रेत खल पात्रों के षड्यंत्र अथवा मनोवैज्ञानिक खामियों ख़लल का रूप होता है,जिसे उनके प्रोटागोनिस्ट उपन्यास के अंत में पर्दाफाश एवं उजागर करते हैं.

इब्ने सफ़ी ने संयुक्त भारत में लिखना शुरू किया.उन्होंने बहुत चतुराई के साथ अपने पात्र रचे और ज़िंदगी भर क़ायम रहे कि उनके जासूस पात्रों के देश का पता नहीं चलता कि वह किस देश के हैं?सिर्फ़ ये पता चलता है कि वे किसी दक्षिण एशियाई देश से हैं.इस कारण आज़ादी और बंटवारे के बाद भी उनके नावेल हिंदुस्तान में भी हमेशा लोकप्रिय रहे.उनके जासूस आम अपराधियों,गिरोहों द्वारा किए जा रहे अपराधों के साथ विस्तारवादी ताकतों से भी दो दो हाथ करते रहते हैं.हालाँकि शुरुआत के उपन्यासों में यह झलकी मिलती है कि इंस्पेक्टर फ़रीदी जो हिंदी अनुवादों में विनोद था और हमीद यू पी के किसी पूर्वी शहर के बाशिंदे हैं और उनके उपन्यासों में मद्रास कलकत्ता बंबई और कानपुर का जिक्र कई नॉवेल्स में है.
इब्ने सफ़ी की उर्दू भाषा जिसमें वे लिखते थे,पर पकड़ बेमिसाल थी,वह मोहक थी और जिसमे गंगा जमुनी तहज़ीब रची बसी थी.इसका कारण ये भी था कि गद्य लेखक के अलावा वे उर्दू के बेहतरीन शायर थे.उन्होंनें शेरो शायरी और ग़ज़लों से ही अपने साहित्य का सफ़र शुरू किया था.
जो कह दिया वही ठहरा हमारा फ़न असरार,
जो कह न पाए न जाने वह क्या बात होती.
हास्य और व्यंग पर भी उनकी बेहतरीन पकड़ थी बल्कि शुरू में उन्होंने मासिक नकहत में इस पर सनकी सोल्जर और तुर्गल फ़ुरगान के नाम से खूब लिखा.उनके जासूसी नॉवेल्स में गाहे बगाहे हास्य प्रसंग उनके नॉवेल्स को पेज टर्नर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. वे कई बार बताते हैं कि उन्होंने बचपन से तिलस्मी होशरूबा बार बार पढ़ी,राइडर हैगार्ड का नावेल शी उनका पसंदीदा था,अतएव प्रिंस चिल्ली जैसे व्यंग उपन्यास के साथ उन्होंने बलदारान की मल्लिका और शुमाल का फ़ीतना जैसे फ़ंतासी भी लिखे. जासूसी पात्रों और उनके अभियानों में विभिन्न तरह के प्रयोग उनकी ख़ासियत थी.उनके जासूस ऐयारों की तरह रूप बदलने में माहिर थे,लेकिन मेक अप से.अद्भुत वैज्ञानिक आविष्कार जो आज हमारे सामने सच में हैं,उन्होंने उनका जिक्र पचासवीं के दशक में ही अपने नॉवलों में किया था .ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाले यान,टनल में द्रुत गति से चलने वाले वाहन और मॉड्यूल,हवा में धुवाँ जैसे आवरण में दिखते दिखने वाले पतले टीवी सेट्स जो आज हॉलीवुड मूवीज़ में दिखते हैं ,सड़क ट्रैफिक कंट्रोल करने वाले रोबोट्स,लेज़र किरण से घातक प्रहार करने वाला पिस्तौल,उन्नत ट्रांसमीटर्स और कई तरह के गैजेट्स आदि की कल्पना और झलक उनके पचासवें दशक के नॉवेल्स में जगह बनाते हैं.

इन सब के वावज़ूद इब्ने सफ़ी के ज़ासूस सुपर ह्यूमन नहीं थे .कर्नल फ़रीदी अका विनोद शारीरिक मानसिक और नैतिक रूप से अत्यंत ही मजबूत किरदार है जो कुछ कुछ इस कैटेगरी में दिखता है,अन्यथा वह,हमीद और इमरान कई बार विलन के धोकों में फँसते दिख जाते हैं.इब्ने सफ़ी की एक ख़ासियत उनके कई विलेन्स का मज़बूत किरदार है,सिंगही,थ्रिसिया,जब्बार,डॉ० सलमान,जिराल्ड शास्त्री,डॉ० ड्रेड,एडलावा और अल्लामा दहशतनाक अका प्रोफेसर सैलानी ऐसे ही मज़बूत किरदार हैं.जिन्होंने इब्ने सफ़ी के हीरो जासूसों को नाके चने चबवा दिए और इसलिए नॉवेल पढ़ने के कई समय बाद तक वे मानस पटल पर छाए रहते है.
कई ज़ासूसी उपन्यासकार जासूसी अपराध लिखने के नाम पर अपने उपन्यासों में महिलाओं को भोग्या,खल कुचरित्र अथवा शोषण का शिकार ही दिखाते हैं.इब्ने सफी अपने कई ज़ासूसी उपन्यासों को महिला पात्रों के माध्यम से आगे बढ़ाते हैं,वे अधिकांशतः अन्याय और ज़ुल्म के विरुद्ध जासूस नायकों के सहयोग में रहती हैं,विशेषकर इमरान सीरीज के उपन्यासों में.वे अपराध के विरुद्ध संघर्ष में नायकों के साथ महत्वपूर्ण भागीदार रहती हैं.
कई बार इब्ने सफ़ी के नॉवेल्स को उनके सतही प्लॉट और इन्वेस्टीगेशन पार्ट की कमी के कारण आलोचना का शिकार बनाया जाता है.इसके मूल में उनका पाठकों की माँग पर बेहिसाब लिखना था.लेकिन यह भी सच है कि उन्होंनें विनोद सीरीज के कुछ पोलिस प्रोसीजरल लिखे उनका हिंदी उर्दू जासूसी नॉवेल्स में कोई जोड़ दिखायी नहीं देता,जैसे शहरी दीवाना,दहशतगर्द,लिवनार्ड की वापसी,लाश का बुलावा,ग्यारहवां जीना,ऊँचा शिकार आदि.इसके अतिरिक्त पत्थर की चीख़,पुरहौल सन्नाटा,इशारों के शिकार,सितारों का अंत और सितारों की चीखें,सापों का मसीहा,सुनहरी चिनगारियाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जासूसी नॉवेल्स हैं .तीसरी नागिन नामधारी एक नॉवेल में उनका हीरो पात्र विनोद शिकरे की तरह अपराधी गैंग पर झपाटा मारता है,इस उच्च कोटि का एक्शन और ग्यारहवाँ जीना नावेल का रहस्य सस्पेंस का जोड़ हिंदी उर्दू नॉवल्स में कहीं और नहीं दिखता.वे अपने नॉवेल्स के माध्यम से तीसरी दुनिया की आवाज थे,अनोखे रक्कास में वे ऐटम बम हाइड्रोजन बम के दौड़ के विरुद्ध आवाज उठाते हैं और प्यासा समंदर में कृत्रिम उपग्रहों को ग़लत उद्देश्यों से अंतरिक्ष में भेजने की बेमतलब की दौड़ के और उसके माध्यम से दूसरे देशों की ज़ासूसी के ख़िलाफ़.यह भी दीगर कि यह सब उन्होंने पचासवें दशक़ में लिखा.इमरान सीरीज के नावेल के तेज रफ़्तारी और रोमांच का तो खैर कोई सानी नहीं है.इन्हीं कारणों से उनका हर नावेल बेस्टसेलर रहा.
उनके उपन्यासों की एक विशेषता यह भी थी कि उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से पाठकों को देश विदेश की यात्रा करायी.मिडल ईस्ट,अमेरिका, इंग्लैंड,दक्षिणी अमेरिका से लेकर अफ़्रीका में तंजानिया और इटली,यहाँ तक कि ईस्ट पसिफ़िक के ताहिती आदि छोटे आइलैंड तक की यात्राएँ.जहाँ की परिस्थितियों का सटीक विवरण उनके उपन्यासों में मिलता.यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि जनाब इब्ने सफ़ी भारत और बाद में पाकिस्तान से बाहर कहीं नहींनिकले.कल्पनाशीलता वाह! उनके उपन्यासों के शहर पूरी तरह आधुनिक हैं, वहाँ आधुनिकतम सुविधा युक्त टिपटॉप,आर्लेक्च्यून,गेलार्ड आदि क्लब थे जहाँ रेस्टोरेंट,बॉल रूम से लेकर स्विमिंग पूल हैं,जबकि उस समय यह सब कॉन्सेप्ट दोनों देशों में बहुत कम था. उन्होंने शकराल,करागाल,मकलाक़ और बलदारान जैसे काल्पनिक रियासतों, समराल और तारीक वादी ,दिग्राज,जीरो लैंड जैसे रहस्यमयी इलाक़ों की भी कल्पना है,जहाँ जासूसों के अभियान और विलेंस और उनके गिरोहों के साथ उनका संघर्ष पाठकों को रोमांचित करते हैं.
कुछ लोग उनकी लोकप्रियता से जल कर ए के व्हीलर कंपनी,जिसके हर रेलवे स्टेशन में किताबों की दुकाने थीं,के साथ जासूसी दुनिया पत्रिका की संबद्धता को उनके उपन्यासों के रिकॉर्ड बिक्री का कारण बताते हैं.ये बिल्कुल ग़लत है क्योंकि व्हीलर के दुकानों पर तो दूसरे उपन्यासकारों के नावेल और पत्रिकाएँ भी बिकती थी,लेकिन लोग इब्ने सफी की जासूसी दुनिया के ही मुरीद क्यों थे ? इसका जवाब इन लोगों के पास नहीं है.यहाँ तक नकहत की अन्य इसी तरह की पत्रिकाएँ रहस्य और तिलस्मी दुनिया के पढ़ने वाले कम थे.इब्ने सफी के नॉवल्स तो अपने देश में हिंदी उर्दू बंगला के साथपाकिस्तान,बंगलादेश से लेकर मिडल ईस्ट देशों तक में पढ़ी जाती थी. इब्ने सफ़ी की लोकप्रियता का फ़ायदा उठाने के लिए कुछ नक्कालों ने उनके पात्रों को लेकर अथवा पात्रों का नक़ल खड़ी कर नॉवेल्स लिखे,उनकी किताबें भी बिकीं,लेकिन इब्ने सफ़ी के स्तर तक पहुँचना किसी के बूते की बात नहीं.उनके बाद के व्यावसायिक रूप से सफल अधिकांश जासूसी नावेल निगारों के पात्रों ने उनके पात्रों की नक़ल पर ही कर अपना रंग रूप लिया.हिन्दी में उनके समय में ही देसी परिवेश के जासूसी कथाकार स्व॰ओमप्रकाश शर्मा ने स्तरीय अपराध कथात्मक नॉवल्स लिखे और प्रशंसा पाई,बाद में वेद प्रकाश काम्बोज,वेद प्रकाश शर्मा भी खूब बिके,सुरेंद्रमोहन पाठक ने कुछ अच्छे लोकप्रिय नावेल लिखे,लेकिन इब्ने सफ़ी के स्तर और लोकप्रियता को आज तक कोई छू न पाया.
विश्व परिदृश्य के परे भारत में लोकप्रिय साहित्य लेखन अब ख़त्म होने के कगार पर है,भारत में इब्ने सफ़ी के नॉवेल्स उपलब्ध भी नहीं हैं,लेकिन ई बुक का अथवा ऑडियोबुक का अब भी कोई पढ़ने,सुनने का शौक़ रखे तो कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उनके नावेल उपलब्ध हैं,यक़ीन मानें उनकी भाषा का प्रवाह,उनका रहस्य रोमांच,सस्पेंस और रोमांस का देशी अंदाज़ अब भी दीवाना बनाने का माद्दा रखता है.इब्ने सफ़ी एक न ख़त्म होने वाली लीगेसी है.
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