

भारत देश का इतिहास जितना पुराना रहा है, वैसा ही प्राचीन यहाँ के शहरों कस्बों का इतिहास है. पाटलिपुत्र,ताम्रलिप्ति,वैशाली,कन्नौज,उज्जैन,हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ,तक्षशिला,भद्रक,द्वारकापूरी,दक्षिण भारत में तंज़ौर,मदुरै,महाबलीपुरम,रामेश्वरम,कोच्चि प्रसिद्ध एवम् पुरातन नगरीय बसावट के केंद्र रहे हैं,जिनकी समृद्धि की धमक आज भी है.
श्रावस्ती,नालंदा,काशी,मथुरा,अयोध्या,अहमदाबाद,देवगिरि,राजगीर,पुरी,भड़ौच,कांचीपुरम,विक्रमशिला,हम्पी आदि भी देश के प्राचीनतम शहरों में से हैं.

बल्कि हमारे देश में प्राचीनतम सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के जो अवशेष भग्नावशेष विभिन्न उत्खनन में प्राप्त हैं, उसका स्वरूप शहरी बसावट का ही है.योजनाबद्ध तरीके से बसे मोहन जोदड़ो,हड़प्पा,सुरकोतड़ा,राखीगढ़ी के शहर और तत्कालीन पोर्ट सिटी के रूप में बसा लोथल.इन बसावटों में सड़कें और गलियाँ लंबाई चौड़ाई में हैं,सड़कों के किनारे प्रकाश व्यवस्था के स्तम्भनुमा स्ट्रक्चर,दुमंजिला तक बने मकान जिनमें शौचालय की व्यवस्था भी विद्यमान है, कम्युनिटी बाजार और अनाज भंडारण के स्थल,पर्याप्त ओपन स्पेस और मोहन जोदड़ो का विस्तृत सामूहिक स्नानागार.यह पुरातन सभ्यता जो ईसा पूर्व 3500 वर्ष पुरानी है,पूर्णतः शहरी बसावट मालूम पड़ती है.
देश के अधिकांश पुराने शहर धार्मिक केंद्रों,व्यापारिक आदान प्रदान के जगहों तथा नदी और समुद्र के ऐसे किनारों पर बसे जहाँ से ख़रीद बिक्री के सामान सुगमता से अन्य शहर तक ले जाए जा सकें.
देशी परिदृश्य के विपरीत अपनी भौगोलिक बनावट के कारण झारखंड में शहरी आबादी बहुत आधुनिक परिघटना है,अतैव यहाँ शहरों का योजनाबद्ध विकास नये और उभरते विकासोन्मुख राज्य के परिप्रेक्ष्य में एक बहुत बड़ा चैलेंज है.देश के बत्तीस प्रतिशत शहरी जनसंख्या के मुक़ाबिल राज्य की 2011 की जनसंख्या 3.29 करोड़ में से लगभग 80 लाख अर्थात् मात्र 24 प्रतिशत आबादी ही झारखण्ड के शहरों में निवास करती है.देवघर,बोकारो और जमशेदपुर को छोड़कर झारखंड के अधिकांश शहर हालिया औद्योगिक और ख़नन गतिविधियों की आवश्यकता के आसपास विकसित हुए,इस कारण गैरयोजनाबद्ध और बेतरतीब बस गए हैं.यहाँ के शहरों में बेहतर स्वास्थ्य,शिक्षा और कुछ हद तक क्वालिटी लाइफ़स्टाइल की उपलब्धता के कारण लोग राज्य के विभिन्न क्षेत्रों एवं दूसरे राज्यों से आ आकर बसे.निकट भविष्य में उपरिउल्लेखित कारणों से शहरों की जनसंख्या में भारी वृद्धि का अनुमान है और शहरों पर संकुचित होते उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग का भारी दबाव भी है.बोकारो और जमशेदपुर वहाँ तत्कालीन स्थापित स्टील प्लांट्स के विभिन्न श्रेणी के कामगारों की रिहाइश के विभिन्न न्यूनतम आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित किए गए,जिसके कारण थोड़े व्यवस्थित शहर हैं,अन्यथा राज्य के दूसरे मुख्य शहर रांची,देवघर,धनबाद,डाल्टनगंज वर्तमान मेदिनीनगर जो राज्य में अपेक्षाकृत बड़े शहर हैं,वे राज्य बनने के बाद जनसंख्या का भारी दबाव झेल रहे हैं. राज्य में इन सब शहरों को मिला कर छोड़े बड़े 49 नगर निकाय चिन्हित हैं जहाँ जनसंख्या बढ़ रही है और वहाँ त्वरित विकास की आवश्यकता है.

राज्य के अधिकांश शहर अनप्लैंड रूप में स्वतः बसे हैं और इस कारणवश शहरों को वास योग्य बनाना बहुत बड़ा चैलेंज है .कई एक शहर तो मुख्य सड़कों के किनारे बसे बड़े कस्बे मात्र हैं जहाँ आबादी बेतरतीब रूप में अपने आप जगह की उपलब्धता के अनुरूप बस गई.इन शहरों में पेय जलापूर्ति,साफ़ सफ़ाई और ज़रूरत का इंफ्रास्ट्रक्चर कमोवेश मिनिमम आवश्यकता के अनुरूप भी नहीं हैं.झारखंड वन पहाड़ियों से भरा है,ग्रामीण क्षेत्र वनों से आच्छादित हैं,लेकिन शहरों में ओपन स्पेस और हरीतिकी ग़ैर योजनाबद्ध अनियंत्रित फैलाव के कारण एलियन कॉन्सेप्ट है.
शहरों की मूलभूत विशेषता चौड़े सड़क और योजनाबद्ध तरीक़े से बसे निवास स्थल,समुचित साफ़ सफ़ाई व्यवस्था,नालियों,परिवहन जैसे नागरिक सुविधाओं की उचित व्यवस्था,आधुनिक शिक्षण संस्थान और विकसित सुविधायुक्त अस्पताल,सिटी सेंटर और मॉल जैसे आधुनिक क्रय विक्रय के स्थल,उचित पेयजलापूर्ति,समुचित जल निकास,सुंदर चौक चौराहे तथा आवश्यकतानुसार पार्क और ओपन स्पेस के स्थल होनीं चाहिए.लेकिन हमारे राज्य में इन सुविधाओं का मूलभूत विकास प्राथमिक अवस्था में है तथा आधारभूत संरचनाओं की वास्तविक कमी है.
सीवरेज,कूड़े कचरे मल पदार्थों का प्रबंधन
शहर अपने साथ बड़ी मात्रा में अवशिष्ट पदार्थ पैदा करते हैं,कचड़ा,घरेलू प्रयोग का दूषित जल और मल पदार्थ.इनका उपचार न हो तो यह पर्यावरण और पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुँचाते हैं,हवा पानी को दूषित कर वातावरण में सड़ांध और दुर्गन्ध पैदा करते हैं.उचित प्रबंधन नहीं होने के कारण दूषित जल मल पदार्थ छोटे छोटे नालों में बह कर आस पास के परिवेश को गंदा बनाते हैं.ये गंदे नाले अंततः छोटी बड़ी नदियों में मिलते हैं और उसकी पारिस्थितिकी का क्रमागत रूप से नाश करते हैं.रांची शहर में हरमू नदी का विनाश हम सब के सामने है.एक समय के स्वच्छ नदी को अतिक्रमण और दूषित जल के प्रवाह ने मिलकर गंदे नाले में बदल दिया और हालिया लगभग सौ करोड़ के खर्चे से उसे थोड़ा सा भी परिवर्तित नहीं किया जा सका है.स्वर्णरेखा जैसी नदी भी रांची के पास लगभग मृत अवस्था में रह जाती है.इसके अतिरिक्त ठोस मल पदार्थों का प्रबंधन भी बड़ी समस्या है,रांची के आउटस्कर्ट्स में झिरी नामक जगह में कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है.इन सब का आधुनिक तरीके से उपचार और समाधान संभव है यदि ईमानदार प्रयास किये जांय.सूरत,अहमदाबाद,इंदौर,पुरी और भुवनेश्वर आदि शहर हमारे सामने हालिया उदाहरण हैं जिन्हें कुशल प्रबंधन द्वारा बेहतर और निवासयोग्य स्वरूप दिया गया है.साबरमती रिवर फ्रंट मृतप्राय नदी को जीवंत स्वरूप देने का जीता जागता उदाहरण है.आधुनिकतम तकनीकों और उचित प्रबंधन से मल जल और ठोस अपशिष्ट का उपचार एवं पुनरुद्धार संभव है,हालांकि इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति सबसे बड़ी आवश्यकता है .उचित ड्रेनेज सिस्टम आज के उन्नत शहरों की सबसे बड़ी आवश्यकता है.परंतु इसका निर्माण एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है,जिसमें ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति और कुशल प्रबंधन की आवश्यकता हमेशा रहेगी,बसे बसाए शहर में जिस तोड़ फोड़ के साथ सीवरेज और ड्रेनेज़ सिस्टम बनाये जाने का उपक्रम किया जाना होता है,वह अपने आप में चैलेंजिंग है.
इन्हीं कारणों से आज के परिप्रेक्ष्य में आम सामाजिक राजनीतिक स्तर पर यह समझ आवश्यक है कि नए सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर शहर के बाहर रिंग रोड अथवा नज़दीकतम खुले स्थलों के आसपास विकसित किए जांय.भविष्य में शेष शहर उसके आस पास अपने आप ही विस्तारित हो जायेगा.सरकारी प्रबंधन के रूप में बस बिल्डिंग बाई लॉ रेगुलेटरी संस्थाएं सही और ईमानदारी पूर्वक अपना काम कर लें तो शहर का अपने आप प्लैंड विकसित स्वरूप ले लेना अवश्यम्भावी हो जाएगा.बगल के राज्य छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का विकास पूर्णतः आधुनिक परिघटना है और एक अच्छे प्रशासक को उस शहर को अपने आदर्श मॉडल के रूप में जरूर देखना और अपनाना चाहिए.
आज ठोस और जल मल पदार्थों का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है. दूषित मल जल के प्रवाह के आस पास फ़िकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट लगा कर उसे नालों नदियों में जाने से रोका जा सकता है.इससे प्राप्त ट्रीटेड पानी का उपयोग कृषि बाग़वानी में किया जा सकता है,आसपास के उद्योगों को बेचा जा सकता है.इस तरह के नवाचार एवं विकासोन्मुख प्रयोग कई राज्यों द्वारा कुशल पूर्वक किया जा रहा है.इस तरह से घरों एवं उद्योगों के पूर्व में उपयोग में लाए गए जल का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा और पानी की कमी की समस्या जो आज की वास्तविकता है,से निश्चित निजात मिलेगी.इसके अतिरिक्त गीले कचरे का प्रबंधन एवं ट्रीटमेंट कर उसका उपयोग बड़े पैमाने पर ऑर्गेनिक उर्वरक बनाने और घरेलू उपयोग के गैस को बनाने में किया जा सकता है,जिसपर कुछ काम हमारे राज्य में प्राथमिक स्तर पर हो भी रहा है.यह सब काम कम खर्चे में अथवा कुशल प्रबंधन से पी पी पी मॉडल पर किया जा सकता है.पीपीपी मॉडल वास्तव में सरकार और निजी उपक्रमों के संयुक्त सहयोग द्वारा किए जाने वाले कार्य हैं जिसमें दोनों के हितसाधन की असीम संभावना है.देश में कुछ निजी कंपनियाँ इस क्षेत्र में विशिष्टता के साथ कार्यरत हैं.इससे म्युनिसिपल फ़ाइनेंस को भी दृढ़ता मिलेगी क्योंकि वेस्ट पदार्थों के कुशल प्रबंधन के साथ यह आर्थिक रूप में लाभप्रद नवाचार की व्यवस्था है.ऐसे भी नगर निकायों का आर्थिक स्वावलंबन आज की सबसे बड़ी जरूरत है, जो मूलतः आज भी सरकारी ऋण और अनुदानों के भरोसे हैं.यदि पुराने शहरों में जल निकास की नई उचित व्यवस्था व्यावहारिक न हो तो जगह जगह पर सौख़्तों की उचित आधुनिकतम व्यवस्था से मल जल को ट्रीट किया जा सकता है,वह एक तरह से रेन वाटर हार्वेस्टिंग के रूप में ग्राउंड वाटर लेवल को बनाये रखने में सहयोगी होगा.
ठोस कचरे में अधिकांशतः बिल्डिंग वेस्ट मटेरियल,प्लास्टिक और लकड़ी बुरादे,पॉलीथिन प्लास्टिक इत्यादि रहता है जो सभी शहर बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं.देश भर में आज कई शहरों ने स्वयं अथवा पीपीपी मॉडल पर प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का कार्य शुरू किया है.वह एक अद्भुत इनोवेटिव व्यवस्था है,जिससे पर्यावरण के कम अथवा न्यूनतम नुक़सान के साथ प्लास्टिक के नये उत्पादन को सीमित किया जा सकता है.लोहे कबाड़ आदि का रीसाइक्लिंग तो और आसान प्रक्रिया है.इन उपक्रमों के द्वारा भी नगरपालिकाएं अपने वित्तीय स्थिति को ठीक कर सकती हैं.नगरपालिकाओं के पास शहर के अंतिम छोरों पर उपलब्ध अवयवहृत जमीन जिसका कि अंततः अतिक्रमण होता है,का उपयोग इन सभी संरचनात्मक निर्माणों के लिए हो सकता है.कोलकाता और इन्दौर शहरों में इस तरह के निर्माण अप्रतिम इनोवेशंस हैं.इसके अतिरिक्त भवन निर्माण के ठोस कचरे और बचे बिल्डिंग मैटेरियल्स का उपयोग क्ले एश ईंट बनाने और टूटे फूटे और बची हुई लकड़ियों को रीसाइकल कर प्लाई बनाने का कई जगह काम हो सकता है,जो आर्थिक रूप से वाइअबल प्रोजेक्ट्स हैं.प्लास्टिक कचरे का उपयोग सड़कें बनाने में और सैलून्स से प्राप्त बालों का उपयोग विग बनाने में किए जाने का उदाहरण केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी अपने कई भाषणों में देकर प्रोत्साहन का काम करते रहते हैं,यह अभिनव प्रयोग के साथ नगर निकायों के लिए लाभप्रद उद्यम हो सकता है और उन्हें आर्थिक स्वावलंबन प्रदान करेगा.क्रमशः
अगले भाग में,राज्य में योजनाबद्ध शहरीकरण कैसे हो…..
बहुत अच्छा लिखा है आपने। अगले भाग का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद! बहुत जल्द….
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