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ऐसे हैं हमारे दिसोम गुरु शिबू सोरेन

शिबू सोरेन झारखंड को अलग राज्य बनाये जाने के लिए किए गये आंदोलन के अगुवा थे,लगातार शोषण अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक गतिविधियों में लगे रहते थे.तत्कालीन मीडिया द्वारा कई बार शिबू सोरेन की छवि किसी ख़ूँख़ार व्यक्ति जैसी बना दी जाती थी.वास्तविक ज़िंदगी में वे बहुत सरल हैं,बच्चों की तरह खिलखिलाते हैं और सब से नरम आवाज में मधुरता से बात करते हैं.वे किसी को कभी बुरा नहीं कहते बल्कि कभी किसी से जोर से बात करते नहीं सुना.बाल सुलभ मधुर आवाज़ में बात करते हैं.दूसरों के दुख से व्यथित होते हैं.उनके घर सवेरे से मदद मांगने वालों का ताँता लगा हुआ रहता है और वे यथासंभव लोगों की मदद करते रहते हैं.कोई बीमार है तो किसी की बेटी की शादी है तो,किसी को बीमारी की इलाज़ के लिए सहयोग चाहिए,तो किसी को बच्चों की किताबों के लिए पैसे की जरूरत है,या किसी को पढ़े लिखे बेरोजगार बेटा बेटी के रोज़गार की ज़रूरत.वे यथा संभव सभी की मदद करते हैं.कई लोगों को जानता हूँ जिनके बेटा बेटी को प्राइवेट कम्पनियों तक में सम्मानजनक काम दिलाया.इसके अलावा वे जब  मुख्यमंत्री थे तो स्थानीय प्रशासन को तुरत संपर्क कर ऐसे व्यक्ति के रोजगार और अन्य सहयोग के लिए कहते थे.

दुनियावी माया से उनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं,वास्तव में वे एक संत हैं.अपने द्वारा बनाये गए राज्य के आम जन के पलायन से व्यथित होते हैं.वे ठेठ शाकाहारी व्यक्ति हैं,संथाली आदिवासी भोजन उनका प्रिय है.गेहूँ बाजरे के आटा की मोटी रोटी साग वे बहुत चाव से खाते हैं.इस कारण उनके नित्य भोजन में कई तरह के साग के बने व्यंजन जरूर होते हैं और भोजन के कुछ देर बाद छाछ.नीम भात,साल के पत्तों के अंदर चावल का आटा डालकर आग पर तैयार की जाने वाली रोटी जिसे संथाल लोग पतड़ा पीठा कहते हैं और चावल के आटे का बना अनरसा,उन्हें बेहद प्रिय है.वे चाय भी बहुत नहीं पीते,कभी कभी उनके यहाँ हल्के नमक की चाय पी है.माँसाहारी भोजन उन्होंने कभी नहीं किया,नशे के ख़िलाफ़ तो उनका आंदोलन ही था,वे आदिवासी समाज की प्रगति में इसे सबसे बड़ा रोड़ा समझते हैं.इसलिए जब उनकी सरकार बनी तो उन्होंने हंडिया शराब की बिक्री में लगी महिलाओं के लिए वैकल्पिक रोजगार के लिए योजनाएं बनाने का आदेश दिया.संथाल परगना, कोल्हान और रांची के इलाकों में सड़क के किनारे,हाट बाजारों में अभी भी आदिवासी महिलाएं आजीविका के रूप में हंडिया शराब बेचते दिखती हैं जिस पर गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है.इसे गुरु जी ने हमेशा एक अभिशाप और शोषित होने का जरिया माना और जब भी आम जन के बीच रहते हैं लोगों को इसके दुष्परिणाम समझाते रहते है.वे कहते थे कि आदिवासी को अपनी जीविका जीने दिया जाय तो सहजन पपीता लगा कर अच्छे से जी लेगा,निकृष्ट कार्य को वह जीविका नहीं बना सकता.एक बार एक बड़ा नौकरशाह उनके यहाँ सलाह लेकर आया कि गुरु जी यहाँ लोग हंडिया बहुत बनाते हैं,क्यों न हम उसकी बॉटलिंग कर बाजार में बिक्री हेतु इनिशिएटिव लाए.गुरु जी ने उनकी बातें ध्यान से सुनी और कुछ नहीं कहा.याद है बाद में उन्होंने मुझसे कहा था कि हो सकता है कि उस ऑफ़िसर ने गुडविल में अच्छे के लिए ही कहा हो लेकिन मैं इस तरह कैसे काम कर सकता हूँ ,मैंने सदा आदिवासियों में नशापान के विरुद्ध आवाज़ उठाई है.मैं जानता हूँ कि हंडिया शराब ने मेरे समाज को कितना नुक़सान पहुंचाया है.महाजनों सूदखोरों ने इसी कमज़ोरी का फायदा उठाया और मेरे लोगों के जमीन सम्पत्ति यहाँ तक कि पूर्वजों द्वारा सदियों से सहेज़ कर रखे गए सोने चाँदी के क़ीमती गहने भी बंधक के नाम पर कब्जा लिया.मेरे राज्य में इतनी प्राकृतिक संपदा,खनिज है,उसका सदुपयोग हो तो राज्य के विकास के लिए वहीं से उपाय सोचेंगे.

     ऐसे हैं हमारे गुरु जी,ग़लत साधनों से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के विरोधी थे.उनका प्रतिरोध आंदोलन यहाँ वहाँ कभी कभी प्रतिहिंसा में हिंसक हुआ,लेकिन उसमें मूल रूप से गांधीजी के सत्य,अहिंसा और सत्याग्रह के तत्व कण कण में रहे.वे किसी को कभी बुरा नहीं कहते बल्कि किसी को डाँटते भी नहीं देखा.

     सामान्य जीवन में बच्चों और गाँवों से आये व्यक्तियों से बात करना पसंद करते हैं, उनके घर बार स्वास्थ्य,शिक्षा,खेतों और मवेशियों आजीविका की बातें.इसलिये जब वे मुख्यमंत्री बने तो सबसे पहले इंटीग्रेटेड फार्मिंग की बात की,किसान खुशहाली योजना चलायी,जिसमे ग्रामीणों किसानों की आर्थिक स्थिति उन्नत करने के लिए उनके खेतों में पानी पहुँचा कर सिंचाई की बात भी थी और मवेशी,मत्स्य पालन के साथ फलदार एवं औषधीय पौधे लगा कर,वनोत्पज के उपयोग से तथा इन क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग एवं स्किल डेवलपमेंट के माध्यम से स्वावलंबन प्राप्ति की योजना थी.उनके द्वारा विशेषरूप में आदिवासी मूलवासियों के विकास के लिये ग्राउंड रियलिटीज के अनुरूप तैयार इस योजना अथवा समरूप तैयार योजना तैयार कर लागू करने पर गंभीरता से विचार की आवश्यकता है.कम ही लोगों को याद होगा कि झारखंड राज्य में अंत्योदय और बीपीएल परिवारों को दो रुपये तीन रुपये में अनाज देने का काम उन्होंने ही शुरू किया था.ग्रामीण आवास विहीन व्यक्तियों के लिए सिदो कान्हु आवास योजना की शुरुआत की थी.

      गुरु जी जानते हैं कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में लोग मुफ़लिसी की ज़िंदगी जीते हैं जबकि वहाँ उद्यमों की असीम संभावनाएं हैं.उन्होंनें हमेशा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की प्रगति को राज्य के विकास की सीढ़ी बताया.अपने मुख्यमंत्री रहने के दौरान ग्रामीण लोगों की ओर ज़्यादा आकर्षित होते थे,उनमें सहज रहते थे,बात करते ताकि राज्य और उनकी सही स्थिति का पता चल सके.साथ ही उनका मानना था कि देश के कुछ अन्य राज्यों से हम विकास की बातें सीख सकते हैं,जैसे केरल ने अपने राज्य में पर्यटन को बढ़ावा दिया,यहाँ तक बंगाल के ग्रामीण,लघु कुटीर उद्योगों की व्यवस्था से वे बहुत प्रभावित थे.एक बार उन्होंने पदाधिकारियों के एक विदेश यात्रा के डेलीगेशन को अमान्य कर दिया कि ऐसी चीजों में हम कुछ सीखना चाहते हैं तो छत्तीसगढ़ से सीखना हमारे लिए ज़्यादा अच्छा मॉडल होगा.

     गुरु जी की अर्धांगिनी रूपी सोरेन हैं जो वास्तव में सब की माँ हैं, सब की गुरु माता.उनका बेटों,बेटी,पुत्रवधुओं,पोते नातियों से भरा पूरा संसार  है.अपने,ग़ैर सभी के साथ उनका अपनापन रहता है.सभी की ज़रूरत स्वास्थ्य का वो ही ख्याल रखती है.

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सामान्यतः गुरू जी को नाराज होते गुस्सा करते नहीं देखा,लेकिन एक बार एक व्यक्ति पर नाराज होते देखा.किसी जिले के वरीय पदाधिकारी के यहाँ किसी जरुरतमंद को भेजा था.वो उस व्यक्ति को बार बार टाल रहे रहे थे जबकि काम होने लायक़ था,उन्होंने फ़ोन पर उस अफ़सर को जोर से डाँटा.उनकी आवाज़ में शेर की गुर्राहट थी. वह बताते हैं कि वे आंदोलन के दिनों में ग्रामीणों से बात करते थे तो कई बार बड़ी भीड़ हो जाती थी.उस समय माईक तो हर जगह उपलब्ध नहीं था इसलिए जोर से बुलंद आवाज़ में बोलना पड़ता था ताकि कोनों गोशों तक बात पहुँचे.कभी कभी गुरुजी अपनों के बीच पुरानी बाते साझा करते हैं.उनका जीवन जीवित किवदंतियों की आख्यानों से भरा पड़ा है.संघर्ष के दिनों में सूदखोर,महाजन,उनके कारिंदे  और भ्रष्ट सरकारी अमला उनकी जान के पीछे पड़ा रहता था.एक क़िस्सा वे बताते हैं,एक बार बराकर नदी के आस पास उनका जनजागरण का कार्यक्रम था.गुरुजी मोटर सायकिल में एक साथी के साथ थे,कुछ लोगों ने हमले के प्रयास में उनका पीछा किया.उन्होंने बराकर नदी में अपनी मोटर साइकिल घुसा दिया,जब वे निकलने निकलने पर थे बरसाती पानी का रेला आया,दुश्मन दूसरे पार में टापते हाथ मल कर रह गए और वह सकुशल नदी पर कर गए.लोगों में प्रचार हो गया कि गुरुजी दैविक आभा से परिपूर्ण हैं.नदी ने उनके लिए रास्ता छोड़ दिया ,कुछ लोगों ने कहा उनका मोटर साइकिल पानी में चल कर  नदी पार हुआ.जब आंदोलन का समय था कई लोग उनकी देखा देखी दाढ़ी रखने लगे,वे बताते हैं,कई जगह पुलिस गंतव्य स्थान तक पहुँचने से उन्हें रोकने के लिए उनकी जैसी शक्ल के व्यक्ति को पकड़ लेती,लेकिन गुरुजी दुमका में 2 फ़रवरी को आयोजित जेएमएम के स्थापना दिवस में रात के बारह बजे भाषण के समय प्रकट हो जाते,लोग कहते उन्हें दैवीय वरदान प्राप्त है,वे आपरूपी हैं और कोई नहीं रोक सकता.दैवीय कृपा तो उन्हें प्राप्त थी ही अन्यथा इतनी कठिन परिस्थिति में अपना जीवन बचा अपने लड़ाई को अंत तक पहुंचाना और उद्देश्य प्राप्ति वह भी जिसे अगेंस्ट ऑड कहते हैं,का विरले ही उदाहरण मिलता है.क्रमश:

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